धुँधकारी भये मनुज अनेका। गौकरण नही कलियुग एका।।
प्रश्न: हे ब्रह्म पिता परमात्मा ! ये कैसा कलियुग काल है जिसमें भक्ति छुपी हुई है और धुँधकारी स्वभाव वाले मनुष्य अधिक से पैदा हो रहे हैं क्यों ?
भगती ग्यान ना जानै कोई। हरि वैराग्य मनुज ना होई।।
प्रश्न : धुँधकारी और कलियुगी मनुष्यों में क्या समानता है अर्थात धुँधकारी का स्वभाव कैसा था ?
उत्तर : शराब, मांस और वैश्यावृति का सेवन करना एवं भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से परहेज रखना जोकि आज कलियुग के मनुष्यों का सहज-स्वाभाव बन चुका है -
प्रश्न : साधु माँ - हे ब्रह्म पिता ! आपने अपनी वाणी द्वारा हर वेद ग्रंथों में आत्माओं के कल्याण के लिए भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को लिखवाया है और कहा है कि भक्ति के बिना आत्मा का कल्याण नही होता है तो हे पिता इस कलियुग काल में तो अनेकानेक मनुष्य धुँधकारी हो चुके हैं जिनको ना तो अपने खान-पान का ही ज्ञान है ना सत्य-असत्य कर्मों का ही और ना ही वे पाप व पुण्य को ही पहचानते हैं तो वे मनुष्य वेदों की वाणी और भक्ति, ज्ञान व वैराग्य को भला कैसे जान सकते हैं ?
वेदों की वाणी नही, पहचानैं इंसान।।
गऊ करण कलि एक ना। धुन्धकारी भये अनेक।
भगती बिन कल्याण ना। जो भक्ति लोप भयी एक।।
ब्रह्म उवाच - हे साधु ! भक्ति के लोप हो जाने से ही कलियुग काल में मनुष्य धुन्धकारी हो चुके हैं मनुष्यों को कुछ भी दिखाई नही देता है और जो दिखाई देता है वह केवल धुँधकारी के समान पाप-कर्म ही उसे चारों ओर दिखाई देते हैं।
- हे साधु ! गौकरण के स्वभाव का मनुष्य तो कलियुग काल में कोई-कोई ही मिलता है जिसके सहारे इस संसार में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य टिके हुए हैं। - भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को मैं परमात्मा हर वेद ग्रन्थ में इसलिए लिखवाता हूँ कि समय आने पर गौकरण के स्वभाव और कर्मों वाला मनुष्य उस वेद-ग्रन्थ वाणी का बखान कर सके जिससे धुंधकारी स्वभाव वाले मनुष्य अपने कल्याण का मार्ग खोज सकें।
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