प्रश्न : भगवान धरती पर कब और किसके पास आते हैं ?
उत्तर : ब्रह्म उवाच: हे साधु ! मैं इस मृत्यु-लोक का वासी नहीं हूँ मैं तो परलोक का निवासी धर्मराज हूँ लेकिन मृत्युलोक में मैं अपने साधु- संतों के पास रहता हूँ और साधु-संतों के पास भी मैं जब आता हूँ जब धरती और धर्म पाप से अधीर होकर व्याकुल हो जाते हैं तो मैं अपने संतों द्वारा ही संसार को पाप मिटाने और धर्म की रक्षा करने का संदेश देता हूँ।
- हे साधु ! जब धरती पर पाप की अति होती है तो धर्म लुप्त होने लगता है फिर मुझ परमात्मा को धर्म की रक्षा के लिए रास्ता बनाना पड़़ता है क्योंकि मैं पाप से भारी वैर करता हूँ और धर्म से मैं नाता जोड़ता हूँ संतों की मदद से ही मैं ब्रह्म हर युग में पापी राक्षसों का विनाश करता हूँ।
- पहले मैं हर किसी को चेतावनी देता हूँ। चेतावनी भी संतों के ज्ञान द्वारा ही देता हूँ संतों की वाणी में ही मेरी वाणी होती है
वाणी जन्में जगत में, बीज ग्यान कौ होय।
साधु के मन जन्म ले, ग्यान देय सब कोय।।
जब-जब जन्म ग्रन्थ कौ होई। सत्य कू रोक सकै ना कोई।।
सत के कारन जन्म करायौ। साधु जग में सत्य न पायौ।।
- हे संत आत्मा ! जो पापी मनुष्य मेरे संतों की निन्दा करता है वह मुझ परमात्मा की निन्दा करता है। मैं संतों की निन्दा करने वाले मनुष्य को अवश्य ही नीचा दिखाता हूँ नीचा भी ऐसा दिखाता हूँ कि वे फिर किसी साधु की निन्दा ना करे।
- हे संत आत्मा ! मैं परमात्मा हमेशा संतों के ही बस में रहता हूँ।
संत मेरे सिर ताज हैं, कभी धरम ना खोय।
धरम कारनै ही लिखें, संत जगत मन रोय।।
धरम के मालिक संत हैं, मैं मालिक संसार।
संत मेरे संसार पै, सदाँ करें उपकार।।
धरम बिना संसार की, रक्षा करै ना कोय।
साधु मैं परमात्मा, सत्य बताऊँ तोय।।
मैं रक्षा संतन करूँ, जो राखें धर्म सम्हार।
संतन बिन रक्षा नही, कभी होय संसार।।
- हे संत आत्मा ! आज कलियुग में पाप-बृद्धि की कोई सीमा नही रही है।
- आज संसार में जो मेरे नाम के कार्य-क्रम और कीर्तन होते हैं वह भी निःस्वार्थ नहीं होते हैं वे भी स्वार्थ के लिए ही होते हैं और जहाँ स्वार्थ होता है, वही पर पाप का डेरा जम जाता है।
- कलियुग में मेरा नाम भी संसार में धन माया से मोल बिक रहा है इसका भी मोल-भाव होकर संसार में सुनाया जाता है।
- हे साधु ! जिस परमात्मा को संसार जानता तक नहीं है तो फिर उसके नाम को बेचने की इजाजत किसने दे दी ?
- हे साधु ! मैं ही वह धर्म हूँ जिसके पैर कलियुग में समय की अधीनता के कारण बंधे पड़़े है और कलियुग के पैरों में पाप की झनकार के घूँघरू बंध रहे हैं और कलियुग छम-छम करता पूरे संसार में भ्रमण कर रहा है।
संत जगाऊँ आत्मा, बात कहूँ समझाय।
ग्यान लिखौ संसार कु, पाप क्यों अति छाय।।
- अर्थात: पाप की अति को रोकने के लिए मैंने आज संत आत्मा के हृदय में जन्म लेकन ब्रह्मज्ञान वाणी धर्मग्रंथ की रचना कराई है।
अँधकार कौ रोग है, मन रोगी संसार।
एक दवा मन ग्यान की, रहै ना मन अँधकार।।
- क्योंकि आज अज्ञान के अँधकार ने मनुष्य के मन को अंधा कर दिया और उस अंधे मन को केवल ज्ञान के शब्द ही प्रकाशमय कर सकते हैं।
धर्म ग्रन्थ में धर्म है, जा धर्म भयी हानि।
कलियुग जैसे काल में, मनुज ना पहचानी।।
- ब्रह्मज्ञान वाणी धर्मग्रंथ में उस धर्म का बीज छुपा हुआ है जिस धर्म की कलियुग में हानि हो रही है लेकिन उक्त धर्म ग्रंथ सत्य और धर्म की रक्षा के लिए पर्याप्त ग्रंथ है।
ग्यान तुम्हारे हाथ है, लिखनौ मेरे संत।
धर्म सत्य के कारणे, लिखवाऊँ भगवंत।।
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