ब्रह्मज्ञान वाणी धर्मग्रंथ क्या है ?


 - ब्रह्मज्ञान वाणी धर्मग्रंथ क्यों लिखवाया ?

प्रश्न: आज कलियुग में परब्रह्म परमात्मा ने 1240 पेज के महान ब्रह्मज्ञान वाणी धर्मग्रंथ की रचना कराई है जिसमें दोहा ; चौपाई और अदभुत लेखों का संकल्न है जिसमें अध्यात्मिक ज्ञान के प्रकरणों की थाय नही है लेकिन मन में ये सवाल  उठता है कि उक्त धर्मग्रंथ को भगवान ने किस विशेष संदेश के कारण लिखवाया है ?
उत्तर: 
बेमतलव आऊँ नहीं, साधु मैं संसार।
अति होय जब पाप की, करें जगत नर नार।।

- भगवान कहते हैं कि मैं ब्रह्म अकारण ही अपना संदेश संसार में नही भेजता हूँ बल्कि जब संसार में पाप की अति होने लगती है तो पाप का विनाश करने से पहले में संसार को अपना धर्म-संदेश देता हूँ।

कलियुग मिटै ना ग्यान बिन, पाप उम्र बढ जाय।
साधु या कलिकाल ते, धर्म कू लेयौ बचाय।।

- भगवान को जगत में अपना संदेश भेजने के लिए अपनी किसी ऐसी भक्त-आत्मा की आवश्यकता होती है जो हजारों वर्षों तक निस्वार्थ भाव से परमात्मा की भक्ति करती है और समय आने पर भगवान की वाणी को जगत में अपने शब्दों द्वारा जन्म देती है और आज उस ब्रह्म भगवान ने साधु माँ को अपना माध्यम बनाकर अपनी ब्रह्मज्ञानवाणी जगत में इस कारण भेजी है ताकि जगत का अज्ञान मिट सके एवं धर्म और सत्य की रक्षा हो सके क्योंकि अज्ञान के कारण ही पाप की बृद्धि होती है और पाप की बृद्धि से धर्म व सत्य को हानि होती है और क्योंकि परमात्मा एक सीमा से अधिक धर्म की हानि को नही सह सकते हैं इसलिए अधर्म का विनाश करने से पहले ही भगवान संसार को ब्रह्मज्ञान वाणी के रूप में अपना संदेश दे रहे हैं। 
धरा धर्म और सत्य बिन, चली जाय पाताल। 
कारण ग्यानी ग्यान दे, ग्यान बिना बुरौ हाल।।

- समय रहते यदि भगवान धर्म और सत्य की रक्षा के लिए कदम नही बढायेंगे तो धर्म की हानि के कारण धरती पाताल को चली जायेगी और क्योंकि पृथ्वी परमात्मा की संरचना का साक्षात अंश है इसलिए वे इसकी रक्षा सदैव करते रहेंगे।
ग्यान लिखौ संसार कु, मेरे साधु संत। 
धरा भयी बेचैन मन, धरम ना है जाय अंत।।

- भगवान का यहां सीधा इशारा यही है कि अब कलियुग में पाप की अति अंत के कगार पर है इसलिए भगवान कह रहे हैं कि हे संत आत्मा अब आप मेरे ज्ञानमयी शब्दों की संसार कल्याण और मार्ग-दर्शन के लिए रचना करें क्योंकि अब धर्म की अधिक हानि से पृथ्वी का हृदय व्याकुल हो उठा है। 

ग्यान तुम्हारे हाथ है, लिखनौ मेरे संत।
धर्म सत्य के कारणे, लिखवाऊँ भगवंत।।

!! ब्रह्मज्ञान का संकेत !!

ब्रह्म उवाच: हे साधु ! मैं परमात्मा आप साधु आत्मा पर अपना संदेश इसलिए लिखवा रहा हूँ कि कोई भी मनुष्य-आत्मा ये न कहे कि भारी कलियुग आने से पहले परमात्मा ने कोई संकेत नहीं दिया। मैं अपना संकेत घोर कलियुग आने से पहले ही दे रहा हूँ। मैं अपना फर्ज पूरा कर रहा हूँ संसार अपना फर्ज पूरा करे या ना करे इससे मुझ परमात्मा पर कोई फर्क नहीं पड़़ता है। आप अपना फर्ज मेरी मुखारबिन्दु की बातों को सुनकर उनको लिख देते हो तो आपका भी फर्ज पूरा हो जाता है। 
- हे साधु ! किसी भी युग में मेरे साधु संत मेरी वाणी को सुनकर मुख नहीं मोड़़ते क्योंकि वे जानते हैं कि परमात्मा की वाणी कभी असत्य नहीं होती है। आपकी लिखी बातों को मैं सत्य ही करके रहूँगा। धर्म की परछाईं उन्हीं मनुष्यों पर पड़़ेगी जिन पर मैं चाहूँगा, जिन आत्माओं के भीतर धर्म निवास करता होगा, वही आत्मा इस धर्म ग्रंथ की छाया में आकर बैठेगी; ये धर्म-ग्रंथ कोई साधारण ग्रन्थ नहीं है। जो मनुष्य इसको अपनी आत्मा की लगन से पढ़े़गा व सुनेगा वह मनुष्य घोर कलियुग में धन्य हो जायेगा, उस मनुष्य को यह भी पता नहीं चलेगा कि आज के समय में कलियुग भी कहीं है, उस मनुष्य को चारों ओर सतयुग ही दिखेगा, वह मनुष्य इस कलियुग में महान होगा और उस मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होगी। 

नोट: भगवान द्वारा ब्रह्मज्ञान वाणी धर्मग्रंथ लिखवाये जाने के और भी अनेकानेक विशेष कारण है लेकिन जिनका सम्पूर्ण विस्तार यहां नही दिया जा सकता है।

साधु या कलिकाल में, ब्रह्म वाणी दई खोय।
ग्यान की प्यासी आत्मा, रहीं ग्यान मन रोय।।

शुभ समय शुभ ज्ञान है, शुभई आत्मा पायें।
जिन मन भारी प्यास है, ब्रह्म उन्हें पिवायें।।


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