आनन्द का मार्ग मिल गया





प्रश्न  : स्थाई आनन्द कैसे मिले ?
- हमें परम-आनन्द का मार्ग कौन बताये ?
- आनन्द मानवीय-जीवन की खोई हुई आध्यात्मिक-धरोहर है लेकिन उसे कैसे प्राप्त करें ?

उत्तर :
पूछ लीजिए सन्त ते, जीवन कौ आनन्द।
कहाँ मिलें परमात्मा, जग के परमानन्द।।

- संत ही हमें असली आनन्द का मार्ग बता सकते हैं।
- संत ही इस कर्म-योनि को श्रेष्टता का मार्ग दर्शा सकते हैं।
- संत ही हमारी हम से पहचान करा सकते हैं।
- संत ही आत्मा और परमात्मा के मिलन का मार्ग बता सकते हैं।
- इसीलिए भगवान श्रीराम ने श्रीरामचरित मानस में सबरी से प्रथम भक्ति का मार्ग संत का मिलन बताया है।

प्रथम भक्ति संतन कर संगा !!

- हे सबरी मेरी भक्ति का पहला मार्ग संतों का मिलन है क्योंकि वहीं से मनुष्य मानव-जीवन की श्रेष्ठता को जान सकता है और जीवन में कल्याणकारी भक्ति को आधार बना सकता है/
- इसीलिए भगवान आज ब्रह्मज्ञान वाणी धर्मग्रंथ में लिखवा रहे हैं कि -

संत मिलें तौ जानिए, अति कृपा भगवान।
हरि कृपा बिन ना मिलें, ना मन आवै ज्ञान।।

- जीवन में सच्चे संतों का मिलना यानि मनुष्य पर भगवान की सीधी कृपा होना है। बिना भगवान की कृपा के मनुष्य का बहुमूल्य जीवन दुःखों में ही व्यतित हो जाता है लेकिन संतों से मिलन नही हो पाता है और बिना संतों के मिलन के मनुष्य को उचित-अनुचित का ज्ञान नही होता है और परिणाम स्वरूप मनुष्य अज्ञान के कारण गलती पर गलती करता चला जाता है जिसके कारण आत्मा चौरासी के जाल को प्राप्त होकर दुःख भोगती रहती है। 

धरा ना खाली संत ते, कभी जगत में होय।
ग्यानी साधु कलिक में, बिरला आबै कोय।।

- ये धरती कभी भी किसी भी काल में संतों से रिक्त तो नही होती लेकिन जिस संत-आत्मा का स्वयं वे परम सहारा लेकर जगत को भक्ति और ज्ञान का संदेश देते हैं ऐसी पूण्य-अवधुत आत्मा धरती पर कभी-कभी ही विचरण करती है।

जिन चरनन साधु चलें, उन चरनन भगवान।
साधु चरनन पाय कै, धरा भयी धनवान।।

- ऐसे दिव्य संतों के चरणों की स्पर्शता पाने के लिए धरती भी सदीयों तक इंतेजार करती है। 

समय संग संयोग वस, आबै कोई संत।
परउपकारी संत के, संग चलें भगवंत।।

- वे समय बडा ही शुभ होता है जिस समय पर भगवान किसी संत का सहारा पाकर धरती पर आते हैं जैसे कि- श्री तुलसीदास जी ; कबीरदास जी ; रैदास जी और मीराबाई आदि। भगवान ऐसी ही पुण्य आत्माओं का सहारा लेकर जन-सामान्य को अपना संदेश देते हैं।

कबीरा मीरा लिख गये, अग्यानी नर ग्यान।
बक्ता ही भगवान हैं, सन्त धरें जिन ध्यान।।

- भगवान ने तुलसी के रूप में जगत को भक्ति और प्रेम का संदेश दिया।
- कबीर के रूप में कर्म का गहन ज्ञान दिया।
- मीरा के रूप में भगवान ने जगत को दिखा दिया कि मैं ब्रह्म अपने भक्त के लिए जहर को भी अमृत बना देता हूँ।
- और सुरदास के रूप में जगत को दिया कि जो मेरे भरोसे चलता है मैं उसे कभी अज्ञान के कुए में नही गिरने देता हूँ।
- लेकिन मनुष्य के लिए दुर्भाग्य की बात ये है कि मनुष्य ऐसी अवधुत आत्माओं के जगत में रहते उन्हें पहचान नही पाता है और उनके जगत से चले जाने पर उन्हें हजारों वर्षों तक पूजता है। 

जगत छोड़ साधु गये, जब आयौ मन ग्यान।
मिलें ना या संसार में, ऐसे संत महान।।

- लेकिन हमें आज ये बताते बडी प्रसंता हो रही है कि बाबा तुलसीदास ; कबीरदास ; रैदास ; सुरदास और मीराबाई आदि भक्तों के समतुल्य एक पुण्य-पवित्र अवधुत आत्मा जगत में विराजमान हैं जिन साधु कान्ति माँ के पुण्य करकमलों के भगवान ब्रह्म ने ब्रह्मज्ञान वाणी धर्म ग्रंथ की रचना कराकर जगत पर परम-उपकार किया है। 

अवतारित मन संत कौ, आये दीना नाथ।
मूरख जग जानै नहीं, हरि संत के साथ।। 

- आज भगवान ने साधु कान्ति माँ के मन में जन्म लेकर जगत को भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, मन का ज्ञान, नारी-धर्म, कलियुग का ज्ञान, गुरू-संत, पाँचों-तत्व व जन्म और मृत्यु जैसे 21 विषयों पर ब्रह्मज्ञान वाणी धर्मग्रंथ की रचना कराई है। 

संतन मन मैं जन्मु जाई। यही जन्म है मेरौ भाई।।

- भगवान कहते हैं कि मैंने श्रीरामचरित मानस, गीता-ज्ञान, भागवत, चारों वेद और 18 पुराणों को किसी ना किसी संत को माध्यम बनाकर ही जगत में भेजा है ताकि मनुष्य अपने कर्मों की गहन गति को जान सके और अपने कल्याण का मार्ग खोज सके।

वाणी जन्में जगत में, बीज ज्ञान कौ होय।
साधु के मन जन्म ले, ज्ञान देय सब कोय।।

- मैं ब्रह्म संत के मन में ज्ञान-बीज के रूप में अँकुरित होता हूँ ताकि अपनी आत्मा रूपी संतान को मानव-देह के रहते ज्ञान का संदेश दे सकूँ। 

कानों कान सुनै ना कोई। साधु बात हरि ते होई।।
बात एक ना हौंय अनेका। साधु भगवन घर जिन एका।।

- जब संत आत्मा परम के ज्ञानमयी शब्दों सुनती है उस समय संत की दशा-स्थिति बडी ही विचित्र होती है अर्थात उस ओंकार-ध्वनि को अन्य सामान्य जन नही सुन सकते हैं। 

एक बकै एक लिख धरै, या दुनिया कु ग्यान।
उपकारी दो आत्मा, संत संग भगवान।। 

बार-बार नर ना मिलै, ऐसौ ग्यान अनमोल।
हाथ कलम साधु दई, खुद राघव रहे बोल।।

वाणी मरै ना ब्रह्म की, जो ग्रंथन लिख जाय।
युगों युगों के बाद ही, ब्रह्म जन्म करवाय।।

- भगवान अपनी जिस वाणी (ज्ञान के शब्दों) को एक बार जगत में जन्म दे देते हैं उसका कभी किसी भी काल में अंत नही होता है लेकिन ये भी सत्य है कि परम की वाणी कभी-कभी ही संसार में जन्मती है जैसे कि आज ब्रह्मज्ञान वाणी धर्मग्रंथ।
- साधु कान्ति माँ 


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