संत और ब्रह्म का नाता

ब्रह्म उवाच : हे साधु ! जिस साधु के पास साधु जैसे आचरण नहीं होते वह साधु कहलाने के योग्य नहीं होता है। 

- साधु के कर्म संसार से अलग होते हैं, साधु को संसार की उल्टी-सीधी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। साधु को संसार से हमेशा बचकर रहना पड़़ता है क्योंकि संसार में तो उथल-पुथल की बात चलती ही रहती हैं। साधु को हर समय संसार से सतर्क रहना पड़़ता है। 

- साधु का तो संसार से रास्ता भी अलग होता है। साधु का भोजन, मन, और कर्म ये सब अलग होते हैं बाहरी तन (शरीर) सबका एक जैसा होता है; लेकिन जो भीतर की शक्ति आत्मा होती है वह संत-जनों की सबसे अलग होती है ; 

- संसार तो शरीर की पहचान करता है और मैं परमात्मा आत्मा की पहचान करता हूँ। हे साधु ! मैं आपको हर समय यही कहता हूँ कि आप मेरे इशारे को समझते हुए संसार से अलग रहो। आप साधुओं की जरूरत मुझ परमात्मा को होती है, संसार को तो ना मेरी जरूरत होती है और ना मेरे साधु-संतों की ही है।

हे साधु ! अगर आप संसार की बातों पर ध्यान दांगे तो जो थोड़ा बहुत धर्म धरती पर बचा है वह मिट जाएगा और मैं आपके बिना अधुरा रह जाऊँगा। हे साधु ! आप संसार की ओर ध्यान ना देकर अपने धर्म और कर्म पर ध्यान रखो वरना संसार आपको भी लूट लेगा। मेरे ना जाने कितने साधु-संत इस संसार की मीठी-खट्टी बातों में लुट चुके हैं। 


साधु कौ संसार में, ना कोई घर होय।
इकलौ जंगल झौपड़़ी, कोई ना वाकौ होय।।

आधौ टूकड़ा खाय कै, साधु भजते राम।
देखें ना वे और कू, रम गये जिन मन राम।।

- ब्रहमज्ञान वाणी धर्म ग्रन्थ 



 



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