भगवान का मनुष्य को संदेश


साधु माँ : हे भगवान ! ये संसार के मनुष्य संसार से ही बेईमानी क्यों करते हैं इसका कारण और परिणाम क्या होता है ?
ब्रह्म उवाच : हे साधु !  जो मनुष्य किसी की बेईमानी करता है वह अज्ञानी/बुद्धि-हीन होता है वह ये नहीं जानता कि मुझको यहाँ से जाना भी होगा सब कुछ छोड़़ना भी होगा। कितनी दुनिया चली गयी और कितनी प्रतिदिन जा रही है ; बेईमान मनुष्य तो सोचता है कि यदि तू चला भी गया तो तेरी संतान इस धन को खायेगी उस अभागे को ये पता नहीं होता कि जब तू ही चला जायेगा तो ये भी निश्चित है कि तेरे बाद तेरी संतान भी जायेगी, तू बेईमानी किसके लिये करता है। ये संसार तो कर्मों का मेला होता है जैसे कि मेले में अच्छी बुरी सब वस्तु बिकती है और सब का मोल भाव अलग-अलग होता है ऐसे ही जग कर्मों का मेला होता है कोई अच्छा कर्म करता है कोई बुरा कर्म करता है बेईमान कभी सुख से नहीं जीता है वह हमेशा ही दुखी रहता है लेकिन वह अपने दुख को किसी के सामने नहीं दिखाता है ना ही वह किसी के सामने अपने दुख को लेकर रोता है। वह ऊपर से हंसता है और भीतर से रोता है ; 
बेईमान मनुष्य की आत्मा को कभी शान्ति नहीं मिलती उसकी आत्मा हमेशा पाप की तलाश में रहती है मरते समय भी वह यही सोचता है कि कहीं से और धन मिल जाये तो मेरा धन और बढ़ जाये ऐसे अभागे मनुष्य संसार के धन को बढ़ाने के चक्कर में अपने असली हरि-सुमिरन धन को खो बैठते हैं। संसार के धन को बढाना/घटाना तो मेरे हाथ में है मनुष्य के हाथ में तो केवल कर्म है। किसान खेत में बीज बोता है उसका काम बोने तक का होता है बाकी तो फसल देने तक का काम मेरा होता है। किसी बीज को तो मैं खेत में ही नष्ट कर देता हूँ; किसी को अधवर में नष्ट करता हूँ; किसी को पका कर नष्ट करता हूँ, फिर भी अभागे मनुष्य नहीं समझते हैं। कर्म के फल को नहीं जानते। अरे मूर्ख इन्सान ! ये संसार और संसार का धन तो मेरा है जिसको तू अपना-अपना कहकर अपना समझता है यह तो तू मनुष्य तन पाकर सपना देख रहा है यह सपना तेरा झूठा है। यह तेरा मोह तेरे किसी काम नहीं आयेगा तेरा यहाँ कुछ भी नहीं है। ये संसार तो तुझे फंसाने वाला माया जाल हैं जिस में तू फंसकर मेरा-मेरा करता है। हे मनुष्य ! तू अपने ज्ञान-नेत्र को खोलकर देख इस संसार में तेरा कौन है और तू किसका है। इस मोह से बाहर निकल ; मैं ब्रह्म ज्ञान का दाता आप सबको ज्ञान का मार्ग दिखाता हूँ। अन्धकार में से प्रकाश में लाता हूँ। गृहस्थी का पालन ईमानदारी से करते हुये धर्म के रास्ते पर चलो, ज्ञान का मार्गदर्शन करो, मैं सबको ज्ञान-उपदेश देता हूँ, झूठे माया-जाल से निकालता हूँ, सत्य सनातन धर्म को पहचानो कि सत्य सनातन धर्म क्या कहता हैं। मैं ही सत्य सनातन धर्म हूँ।

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