ब्रह्म उवाच : हे साधु ! जो मनुष्य मेरे संतों का जानबूझकर अपमान करते हैं उन मनुष्यों को मैं परमात्मा कभी माफ नहीं करता हूँ क्योंकि संतों के अपमान को मैं सह नहीं सकता हूँ जिन संतों के अधीन मैं परमात्मा रहता हूँ उनके अपमान को सहना मेरे धर्म के विरुद्ध है। हे साधु ! जब-जब इस संसार में अज्ञानी मनुष्यों ने मेरे संतों को अपमानित किया और उनकी रहने वाली उस भूमि को छीना जिस भूमि पर मेरे संत मुझ परमात्मा से ध्यान लगाकर संसार के मनुष्य व जीव आत्माओं के लिये दुआ मांगते थे, कि हे पिता हम संतों के रहते हुये आपके संसार में कोई भी आत्मा दुखी न रहे उन दुखियों के दुख को हम संतों को दे दीजिये और उनको सुखी कीजिये। हे पिता ! हम संत तो आपके दर्शन व संसार के मनुष्यों के सुख से ही सुखी हो जाते हैं।
ब्रह्म उवाच : हे साधु ! आज मैं परमात्मा तुम्हें सत्य ही बता रहा हूँ कि ये संसार मेरे संतों की सत्य दुआओं पर ही डट रहा है वरना इसे कोई डाटने वाला ना तो आज तक पैदा हुआ है और ना कोई होने वाला है। ऐसे संतों को भी अपमानित करके और उनकी वे पवित्र-भूमि छीन ली जाये जहाँ वे संसार के सब जीव आत्माओं कि खैर मांगते हौं तो क्या मैं परमात्मा समय आने पर उन मनुष्यों को मांफ कर सकता हूँ ? उनको दण्ड देना ही मेरा धर्म है उन संतों की आत्माओं की निर्मलता को तो मैं परमात्मा ही जानता हूँ।
संतों के अपमान कू, सह ना सके भगवान।
समय पाय संसार में, आय लिखायौ ग्यान।।
लिखिया वक्ता रोमते, संतन कर-कर ध्यान।
भूमि उत्तराखण्ड की, छीनि बेईमान।।
साधु माँ : हे पिता ! क्या आपके संतों की भूमि उत्तराखण्ड ही है ? जो आप बार-बार उस भूमि की याद करके रोने लगते हो उस भूमि पर आपकी इतनी अधिक ममता क्यों है ? जिसके कारण आप रोते-रोते इतने क्रोधित हो जाते हो, ऐसा क्या है उस उत्तराखण्ड की भूमि में जिसको हम संत भी नहीं जान पाये हैं ?
ब्रह्म उवाच : हे साधु ! आप क्या जानो मुझ पिता की ममता को ; संतान कभी भी नहीं जान पायेगी क्योंकि ममता हमेशा संतान से छिपाकर रखी जाती है। हे साधु ! मैं परमात्मा, ममता उस उत्तराखण्ड की भूमि से इसलिये करता हूँ कि उस भूमि पर मेरे संतों ने मुझ परमात्मा से ध्यान लगा-लगा कर अपने प्राणों को छोड़ा था और मुझ परमात्मा से वचन लिये थे कि हे पिता हम संत आत्माओं कि भूमि को जब-जब संसार में पाप की अति हो तो हे पिता हमारी इस उत्तराखण्ड की भूमि को उन पापियों से छुडा लेना, तो फिर उन संतों के वचन को स्वीकार करते हुये मुझ परमात्मा ने भी उन संतों को वचन दिये थे कि समय आने पर हे संतों मैं परमात्मा आपकी उत्तराखण्ड की भूमि को पापियों से अवश्य ही छुडाऊँगा। हे साधु ! आप ये तो जानते ही हैं कि मैं परमात्मा संतों के सिवाय किसी से भी ममता नहीं करता हूँ। मैं तो संतों के वचनों से बंधा रहता हूँ संमय आने पर संतों के वचनों को सत्य ही करता हूँ क्योंकि संतों की आत्माओं में मुझ परमात्मा से भी अधिक बल रहता है इसीलिये मैं संतों के अधीन रहता हूँ। मैं परमात्मा भी संत आत्माओं के सामने हार जाता हूँ।
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