ब्रह्म उवाच : हे साधु ! मैं परमात्मा आप साधु-आत्मा पर अपना संदेश ब्रह्मज्ञान वाणी/धर्मग्रंथ के रूप में इसलिए लिखवा रहा हूँ कि कोई भी मनुष्य आत्मा ये न कहे कि भारी कलियुग आने से पहले परमात्मा ने अपना कोई संकेत नहीं दिया। मैं ब्रह्म अपना संकेत घोर कलियुग आने से पहले ही दे रहा हूँ ; मैं अपना फर्ज पूरा कर रहा हूँ, संसार अपना फर्ज पूरा करे या ना करे इससे मुझ परमात्मा पर कोई फर्क नहीं पड़़ता है। आप अपना फर्ज मेरी मुखारबिन्दु की बातों को सुनकर उनको लिख देते हो तो आपका भी फर्ज पूरा हो जाता है। हे साधु ! किसी भी युग में मेरे साधु-संत मेरी वाणी को सुनकर मुख नहीं मोड़़ते क्योंकि वे जानते हैं कि परमात्मा की वाणी कभी असत्य नहीं होती है, आप की लिखी बातों को मैं सत्य ही करके रहूँगा। इस धर्म-ग्रंथ की परछाईं उन्हीं मनुष्यों पर पड़़ेगी जिन पर मैं चाहूँगा, एवं जिन आत्माओं के भीतर धर्म निवास करता होगा, वही आत्मा इस धर्म ग्रंथ की छाया में आकर बैठेगी, ये धर्म-ग्रंथ कोई साधारण ग्रन्थ नहीं है जो मनुष्य इसको अपनी आत्मा की लगन से पढ़े़गा व सुनेगा वह मनुष्य घोर कलियुग में धन्य हो जायेगा एवं उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी।
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