ब्रह्म उवाच : हे साधू ! मैं ब्रह्म परमात्मा निराकार होते हुये भी संतों के मन में जन्म लेकर इस धरा-धाम पर दुष्ट आत्माओं का उद्धार करने के लिये प्रकट होता रहता हूँ क्योंकि हर आत्मा मुझ परमात्मा की अंशी होती है। दुष्ट आत्माओं को इतना ज्ञान कहाँ कि वे दुष्ट-आत्मा मुझ परमात्मा की शरण में आयें, इसीलिये हे साधू ! मैं परमात्मा खुद उन दुःखी आत्माओं के उद्धार के लिये शुभ-समय आने पर उनके पास ब्रह्मज्ञान पहुँचाकर उनका उद्धार करता हूँ।
साधू माँ : हे ब्रह्म पिता ! कलियुग के समय में तो दुष्ट आत्मा ही संसार में अधिक से अधिक पायी जाती हैं। क्या आप इस ब्रह्मज्ञान द्वारा सभी दुष्ट आत्माओं का उद्धार करते हो ?
ब्रह्म उवाच : हाँ साधू, मैं परमात्मा संसार में ब्रह्मज्ञान द्वारा ही जाना जाता हूँ और ब्रह्मज्ञान पाने वाली दुष्ट आत्माओं का उद्धार करता हूँ। ब्रह्मज्ञान होने पर दुष्ट-आत्मा अपने किये हुये कर्मों के बारे में मन ही मन सोच-विचार करने लगती है। हे साधू ! जिस तरह सबकी मौत एक साथ नहीं होती है उसी तरह सब दुष्ट आत्माओं का उद्धार एक साथ तो नही होता लेकिन समय-समय पर ब्रह्मज्ञान पाने से उनका उद्धार समयानुसार होता अवश्य रहता है।
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