भगवान कैसे भक्त के वस होते हैं ?

ब्रह्म उवाच : हे साधु ! मैं भक्तों की लाज बचाने वाला दाता हूँ। मैं दाता ही युग-युगांतरों से भक्तों की लाज बचाता हूँ, मुझको संसार नहीं जानता है और ना ही संसार मेरा विश्वास करता है इसीलिए तो संसार मेरे सच्चे भक्तों की भी हँसी करता है। कोई भक्त के लिये कहता है कि ये तो पागल है, कोई कहता है ढोंगिया ढोंग करता है फिर उसकी ओर ताककर ताली मार हँस जाते हैं। मैं इन सब बातों को देखता हूँ लेकिन मेरे भक्त इन बातों पर ध्यान नहीं देते हैं क्योंकि जैसे- कोई मनुष्य मदिरा पीकर बेहोश नशे में रहता है उसे चाहे कोई गाली दे या मारे, भूखा रहे या प्यासा, पर वह  किसी की भी बात पर ध्यान नहीं देता है और ना ही उसको यह याद रहती है कि उसके साथ कौन कैसा व्यवहार कर रहा है ठीक उसी तरह मेरे भक्त भी अपनी भक्ति के नशे में डूबे रहते हैं। उनको तो मुझ परमात्मा के नशे में रहना ही अति सुखद लगता है। दुनिया कुछ भी कहे पर भक्त तो अपनी भक्ति के नशे में रात-दिन राम/कृष्ण रटन में पागल रहते हैं, उनको तो संसार से कुछ मतलब ही नहीं रहता है। मेरे भक्त संसार से पूरी तरह टूट जाते हैं और मुझ परमात्मा से जुड़ जाते हैं। मैं परमात्मा संसार में भक्त की लाज को बचाता हूँ।

भगती नसा न उतरै भाई। कारन संत जगत लिख जाई।।
नसा न भगती जैसौ कोई। जाते ग्यान आत्मा होई।।



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