प्रश्नः- भगवान ब्रह्म के विस्तार की संज्ञा क्या है अथवा ब्रह्म किसे कहते हैं ?
उत्तरः- सृष्टि के रचयिता ब्रह्म का सार-
ब्रह्म जोकि अविनाशी है, अजन्मा है अगोचर है, प्रकृतिदत्त है, जग-पालक है, जग दाता है, जो सभी ईश्वरीय रूपों, माया और पाँचों तत्वों का स्वामी है, भक्ति, ज्ञान, और वैराग्य जिसका मार्ग है, ओंकार ध्वनि जिसका स्वर व सूर्य जिसकी पहचान है, जिसकी प्रचंड शक्ति और प्रकाश में प्रत्येक जीव साँस लेकर जीवनयापन करता है, वह ब्रह्म है।
ब्रह्म उस परम शक्ति का नाम है, जो इस सृष्टि का रचेयता है, जिसकी चेतना प्रत्येक जीव में समाहित है, जिसके नाम मात्र से मन, बुद्धि, विचार, इन्द्रियाँ और आत्मा सात्विक व पवित्र हो जाते हैं,
उसकी विशालता का स्वरूप इतना विस्तृत है कि जहाँ मानव के विचारों की विकल्पता समाप्त हो जाती है वहाँ से उसकी अनन्त शक्ति, ज्ञान, राग, वैराग्य, भक्ति, मुक्ति का अथाह सागर आरम्भ होता है।
ब्रह्म वह परमज्योति है जो साधारण मानव की बुद्धि से परे है, अथवा ज्ञानी, तपस्वी, व साधू-संतों को जो अपना परिचय ओंकार ध्वनि के रूप में श्रवण कराते हैं। केवल साधू-संत, ज्ञानी-वैरागी, तपस्वी, ऋषि-मुनि ही जिस अथाय ज्ञान-सागर की चंद अमृतमय बूँदों को ग्रहण कर पाते हैं; वह ब्रह्म है।
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