ब्रह्म उवाच : हे साधु ! इस धर्मग्रंथ के तो वही मनुष्य अधिकारी होंगे जो मेरे प्रेमी होंगे, बेसीमांत कामी, क्रोधि और लोभी मनुष्यों को मेरा ये ग्रन्थ नहीं भायेगा।
काम बुरौ न कामना, अति बुरी सब कोय।
बिना काम संसार में, जीव न पैदा होय।।
इस ग्रन्थ में पापियों की सच्चाई लिखी गई हैं। इसलिये ये ग्रन्थ पापियों को नहीं भायेगा। पाप करने का मैं बहुत समय दे चुका हूँ पर अब मुझ परमात्मा का भी वह समय आ चुका हैं कि सबको बता दूँ कि मैं भी अपने घर में आ बैठा हूँ। पापियों के पाप के कारण ही मुझे आना पड़़ता है। संत आत्माओं को दुख-सुख देकर धर्म को पाप से छुडाता हूँ। हे साधु ! मैं परमात्मा धर्म-नीति से काम करता हूँ, वर्ना पाप को मिटाने में मुझे देर नहीं लगेगी। नीति समय मांगती हैं और अनीति समय की कीमत नहीं जानती है। धर्म धैर्यवान होता है और अनीति अँधी होती है, वह समय को नहीं पहचान पाती है। अनीति बिना समय के ही कुछ भी कर सकती है। अनीति वाले मनुष्य अन्त में पछताते हैं और धैर्यवान मनुष्य को कभी पछताना नहीं पड़़ता है क्योंकि उसके पास धर्म होता है।
दुख पामें सब आत्मा, कलियुग में भारी।
बुद्धि बिगरै पाप ते, कलियुग नर नारी।।
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